Tuesday, February 7, 2017

पुण्य का फल 



एक गांव मे एक बहुत गरीब सेठ रहता था जो कि किसी जमाने बहुत बड़ा धनवान था जब सेठ धनी था उस समय सेठ ने बहुत पुण्यं किए गउशाला बनवाई गरीबों को खाना खिलाया अनाथ आश्रम बनवाए और भी बहुत से पुण्य किए थे लेकिन जैसे जैसे समय गुजरा सेठ निर्धन हो गया .

एक समय ऐसा आया कि राजा ने ऐलान कर दिया कि यदि किसी व्यक्ति ने कोई पुण्य किए हैं तो वह अपने पुण्य बताएं और अपने पुण्य का जो भी उचित फल है ले जाए यह बात जब सेठानी ने सुनी तो सेठानी सेठ को कहती है कि हमने तो बहुत पुण्य किए हैं तुम राजा के पास जiओ और अपने पुण्य बताकर उनका जो भी फल मिले ले आओ सेठ इस बात के लिए सहमत हो गया और दुसरे दिन राजा के महल जाने के लिए तैयार हो गया i

 जब सेठ महल जाने लगा तो सेठानी ने सेठ के लिए चार रोटी बनाकर बांध दी कि रास्ते मे जब भुख लगी तो रोटी खा लेना सेठ राजा के महल को रवाना हो गया गर्मी का समय दोपहर हो गई सेठ ने सोचा सामने पानी की कुंड भी है वृक्ष की छाया भी है क्यों ना बैठकर थोड़ा आराम किया जाए व रोटी भी खा लुंगा सेठ वृक्ष के नीचे रोटी रखकर पानी से हाथ मुंह धोने लगा भी वहां पर एक कुतिया अपने चार पांच छोटे छोटे बच्चों के साथ पहुंच गई और सेठ के सामने प्रेम से दुम हिलाने लगी क्यों कि कुतिया को सेठ के पास के अनाज की खुशबु आ रही थी कुतिया को देखकर सेठ को दया आई सेठ ने दो रोटी निकाल कुतिया को डाल दी ,अब कुतिया भुखी थी और बिना समय लगाए कुतिया दोनो रोटी खा गई और फिर से सेठ की तरफ देखने लगी i 


 सेठ ने सोचा कि कुतिया के चार पांच बच्चे इसका दुध भी पीते है दो रोटी से इसकी भुख नही मिट सकती और फिर सेठ ने बची हुई दोनो रोटी भी कुतिया को डाल कर पानी पीकर अपने रास्ते चल दिया सेठ राजा के दरबार मे हाजिर हो गया और अपने किए गए पुण्य के कामों की गिनती करने लगा और सेठ ने अपने द्वारा किए गए सभी पुण्य कर्म विस्तारपुर्वक राजा को बता दिए और अपने द्वारा किए गए पुण्य का फल देने बात कही तब राजा ने कहा कि आपके इन पुण्य का कोई फल नही है यदि आपने कोई और पुण्य किया है तो वह भी बताएं शायद उसका कोई फल मै आपको दे पाउ i सेठ कुछ नही बोला और यह कहकर बापिस चल दिया कि यदि मेरे इतने पुण्य का कोई फल नही है तो और पुण्य गिनती करना बेकार है अब मुझे यहां से चलना चाहिए i 

 जब सेठ बापिस जाने लगा तो राजा ने सेठ को आवाज लगाई कि सेठ जी आपने एक पुण्य कल भी किया था वह तो आपने बताया ही नही सेठ ने सोचा कि कल तो मैनें कोई पुण्य किया ही नही राजा किस पुण्य की बात कर रहा है क्यों कि सेठ भुल चुका था कि कल उसने कोई पुण्य किया था सेठ ने कहा कि राजा जी कल मैनें कोई पुण्य नहीं किया तो राजा ने सेठ को कहा कि कल तुमने एक कुतिया को चार रोटी खिलाई और तुम उस पुण्य कर्म को भुल गए..... कल किए गए तेरे पुण्य के बदले तुम जो भी मांगना चाहते हो मांग लो ,वह तुझे मिल जाएगा i

सेठ ने पुछा कि राजा जी ऐसा क्यों मेरे किए पिछले सभी कर्म का कोई मुल्य नही है और एक कुतिया को डाली गई चार रोटी का इनका मोल क्यों ?? राजा के कहा हे सेठ जो पुण्य करके तुमने याद रखे और गिनकर लोंगों को बता दिए वह सब बेकार है क्यों कि तेरे अन्दर मै बोल रही है कि यह मैनें किया तेरा सब कर्म व्यर्थ है  जो तुं करता है और लोगों को सुना रहा है!!  जो सेवा कल तुमने रास्ते मे कुतिया को चार रोटी पुण्य करके की वह तेरी सबसे बड़ी सेवा है उसके बदले तुम मेरा सारा राज्य भी ले लो वह भी बहुत कम है।

क्योंकि बुरा कोई आदमी है ही नहीं!!
एक दिन फकीर के घर रात चोर घुसे। घर में कुछ भी न था।  सिर्फ एक कंबल था, जो फकीर ओढ़े लेटा हुआ था।  सर्द रात, फकीर रोने लगा, क्योंकि घर में चोर आएं और चुराने को कुछ नहीं है, इस पीड़ा से रोने लगा।
उसकी सिसकियां सुन कर चोरों ने पूछा कि भई क्यों रोते हो? फकीर बोला कि आप आए थे - जीवन में पहली दफा,
यह सौभाग्य तुमने दिया! मुझ फकीर को भी यह मौका दिया!लोग फकीरों के यहां चोरी करने नहीं जाते, सम्राटों के यहां जाते हैं। तुम चोरी करने क्या आए, तुमने मुझे सम्राट बना दिया।
ऐसा सौभाग्य! लेकिन फिर मेरी आंखें आंसुओ से भर गई हैं, सिसकियां निकल गईं,  क्योंकि घर में कुछ है नहीं।  तुम अगर जरा दो दिन पहले खबर कर देते तो मैं इंतजाम कर रखता दो—चार दिन का समय होता तो कुछ न कुछ मांग—तूंग कर इकट्ठा कर लेता।
अभी तो यह कंबल भर है मेरे पास, यह तुम ले जाओ। और देखो इनकार मत करना। इनकार करोगे तो मेरे हृदय को बड़ी चोट पहुंचेगी।
चोर घबरा गए, उनकी कुछ समझ में नहीं आया। ऐसा आदमी उन्हें कभी मिला नहीं था।
चोरी तो जिंदगी भर की थी,  मगर ऐसे आदमी से पहली बार मिलना हुआ था। भीड़— भाड़ बहुत है, आदमी कहां? शक्लें हैं आदमी की, आदमी कहां?
पहली बार उनकी आंखों में शर्म आई, और पहली बार किसी के सामने नतमस्तक हुए, मना नहीं कर सके।
मना करके इसे क्या दुख देना, कंबल तो ले लिया। लेना भी मुश्किल! क्योंकि इस के पास कुछ और है भी नहीं,
कंबल छूटा तो पता चला कि फकीर नंगा है। कंबल ही ओढ़े हुए था, वही एकमात्र वस्त्र था— वही ओढ़नी, वही बिछौना।
लेकिन फकीर ने कहा. तुम मेरी फिकर मत करो, मुझे नंगे रहने की आदत है। फिर तुम आए, सर्द रात, कौन घर से निकलता है। कुत्ते भी दुबके पड़े हैं।  तुम चुपचाप ले जाओ और दुबारा जब आओ मुझे खबर कर देना।
चोर तो ऐसे घबरा गए और एकदम निकल कर झोपड़ी से बाहर हो गए।
जब बाहर हो रहे थे तब फकीर चिल्लाया कि सुनो, कम से कम दरवाजा बंद करो और मुझे धन्यवाद दो।
आदमी अजीब है, चोरों ने सोचा।
कुछ ऐसी कड़कदार उसकी आवाज थी कि उन्होंने उसे धन्यवाद दिया, दरवाजा बंद किया और भागे।
फकीर खिड़की पर खड़े होकर दूर जाते उन चोरों को देखता रहा।
कोई व्यक्ति नहीं है ईश्वर जैसा, लेकिन सभी व्यक्तियों के भीतर जो धड़क रहा है, जो प्राणों का मंदिर बनाए हुए विराजमान है, जो श्वासें ले रहा है, वही तो ईश्वर है।
वो चोर पकड़े गए। अदालत में मुकदमा चला,  वह कंबल भी पकड़ा गया। और वह कंबल तो जाना—माना कंबल था।
वह उस प्रसिद्ध फकीर का कंबल था। मजिस्ट्रेट तत्‍क्षण पहचान गया कि यह उस फकीर का कंबल है। 
तो तुमने उस फकीर के यहां से भी चोरी की है?
फकीर को बुलाया गया। और मजिस्ट्रेट ने कहा कि अगर फकीर ने कह दिया कि यह कंबल मेरा है और तुमने चुराया है,
तो फिर हमें और किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है।
उस आदमी का एक वक्तव्य, हजार आदमियों के वक्तव्यों से बड़ा है।
फिर जितनी सख्त सजा मैं तुम्हें दे सकता हूं दूंगा।
चोर तो घबरा रहे थे, काँप रहे थे  जब फकीर अदालत में आया। और फकीर ने आकर मजिस्ट्रेट से कहा कि नहीं, ये लोग चोर नहीं हैं, ये बड़े भले लोग हैं।  मैंने कंबल भेंट किया था और इन्होंने मुझे धन्यवाद दिया था।
और जब धन्यवाद दे दिया,  बात खत्म हो गई।
मैंने कंबल दिया, इन्होंने धन्यवाद दिया। इतना ही नहीं,  ये इतने भले लोग हैं कि जब बाहर निकले तो दरवाजा भी बंद कर गए थे।
मजिस्ट्रेट ने तो चोरों को छोड़ दिया, क्योंकि फकीर ने कहा. इन्हें मत सताओ, ये प्यारे लोग हैं, अच्छे लोग हैं, भले लोग हैं।
चोर फकीर के पैरों पर गिर पड़े और उन्होंने कहा हमें दीक्षित करो।  वे संन्यस्त हुए। और फकीर बाद में खूब हंसा।
और उसने कहा कि तुम संन्यास में प्रवेश कर सको इसलिए तो कंबल भेंट दिया था।
इसे तुम पचा थोड़े ही सकते थे। इस कंबल में मेरी सारी प्रार्थनाएं बुनी थीं। इस कंबल में मेरे सारे सिब्दों की कथा थी।
झीनी—झीनी बीनी रे चदरिया
उस फकीर ने कहा प्रार्थनाओं से बुना था इसे।
इसी को ओढ़ कर ध्यान किया था। इसमें मेरी समाधि का रंग था,
गंध थी। तुम इससे बच नहीं सकते थे।
यह मुझे पक्का भरोसा था, कंबल ले ही आएगा तुमको
उस दिन चोर की तरह आए थे
आज शिष्य की तरह आए।
मुझे भरोसा था।
क्योंकि बुरा कोई आदमी है ही नहीं।
चादर की कीमत

जनवरी की सर्द भरी रात थी सडक पर चारो तरफ सन्नाटा फैला हुआ था दूर दूर तक कोई नजर नही आ रहा था बीच बीच में सिर्फ कुत्तो के भौकने की आवाज़ आती थी जो की सडक की सन्नाटे को बीच बीच में चिर रही थी लेकिन सडक के किनारे बनी झोपडी में वह बूढी माँ अपने बच्चे के साथ किसी तरह उस ठंडसे बचने की कोशिश कर रही थी लेकिन फटी चादर और झोपडी में से आने वाली सर्द हवाए उस माँ बेटे के जीवन की बार बार परीक्षा ले रही थी वे दोनों जितना ठंड से बचने की कोशिश करते ठंड उतनी ही बढती जा रही थी जिसके कारण उस बूढी माँ से उसका बेटा बोलता माँ क्या हम हमेसा ऐसे ही ठंड से कापते रहेगे क्या हम लोगो के पास अपना पक्का घर और ओढने के लिए कभी चादर नही होगा क्या ?
जिससे यह सब बाते सुनकर उस बूढी माँ का मन ही मन कलेजा काप जाता था लेकिन कभी जीवन से हिम्मत न हारने वाली वह बूढी माँ अपने बेटे को सांत्वना देती की बेटा जब तुम बड़े हो जाओगे तो वो सब हमारे पास होगा जो तुम पाना चाहते हो बस तुम अपने पैरो पर खड़ा हो जाओ और फिर तुम इतना कमाना की चादर की कीमत तुम्हारी कमाई से कम लगे जिससे आसानी से तुम अपने लिए चादर खरीद सकते हो ,
अपनी माँ से यह बाते सुनकर उस बेटे का हिम्मत जोश से भर जाता और फिर मन ही मन सोचता की जरुर एक दिन वह बहुत बड़ा आदमी बनेगा जिससे वह अपने और अपने माँ के लिए चादर खरीदेगा जिससे फिर कभी ठंड से अपनी माँ को और खुद को परेशान नही होना पड़ेगा और इसी सपने को पूरा करने के लिए उस बूढी माँ का बेटा अपने माँ के साथ दिन भर मेहनत मजदूरी करता और मन ही मन सोचता की एक दिन जरुर उसका सपना पूरा होगा
अपने बेटे के ठंड से परेशान होने की वजह से वह बूढी माँ जहा काम करती थी अगले दिन उस सेठ से जाकर बोली की मुझे एक चादर खरीदने के लिए कुछ पैसे या कोई चादर दे दे, गरीब बूढी माँ की बाते सुनकर सेठ का हृदय पिघल गया और उसने एक चादर दे दिया तो वह बूढी माँ अपने सेठ से चादर की कीमत पूछने लगी तो सेठ बोला जो तुम्हे ठीक लगे और जब तुम्हारे पास पैसे हो तब चादर की कीमत दे देना यह बाते सुनकर वह बूढी औरत मन ही मन अपने सेठ को आशीर्वाद दे रही थी और उसे ये भी चिंता रहती थी की वह वह उस चादर की कीमत कैसे चुकाएगी
समय बीतता गया उस बूढी माँ के हाथ पाँव पहले के मुकाबले कमजोर हो गये और वह लड़का बड़ा हो गया जिससे अब वह लड़का अपनी बूढी माँ को काम पर नही जाने देता और खुद को इतना काबिल बना लिया था की वह पढना लिखना जान गया था जिसके कारण उसे उसी सेठ के यहाँ नौकरी मिल गयी वह लड़का अपनी माँ की तरह बहुत ही मेहनती था जिससे उसका सेठ भी उस लड़के के काम से प्रभावित होकर उसकी पहली तनख्वाह पर उसके तनख्वाह के साथ उसके लिए एक चादर भेट करनी चाही तो यह सुनकर उस लड़के की आखे भर आई और वह अपने सेठ से बोला की साहब आप जो चादर देना चाहते है उसे मुझे न देकर अगर मेरी माँ को भेट करेगे तो शायद चादर की असली कीमत होंगी क्यूकी अगर आज जिस मुकाम पर मै पंहुचा हु तो शायद इसमें मेरी माँ का ही हाथ है और इसलिए इस चादर को मेरी माँ को भेट करना
यह सब बाते सुनकर उस सेठ का हृदय गदगद हो उठा और बोला ठीक है अगर तुम्हारी सोच इतनी अच्छी है तो तुम्हारे माँ से मै जरुर मिलुगा तुम कल अपनी माँ के साथ आना और फिर जब अगले दिन वह बूढी औरत अपने बेटे के साथ उस सेठ के पास गयी तो तुरंत उसने अपने सेठ को पहचान लिया और सेठ द्वारा दिए गये पहले चादर की कीमत देने की बात याद आ गयी और फिर जब सेठ उस बूढी औरत को चादर देने लगा तो उसके आँख से आसू छलक आये और वह बोली की मै अभी पहले दी हुई ही चादर की कीमत आपको दे नही पायी हु अब भला इस चादर की कीमत कैसे चुकाऊगी.
तो यह बाते सुनकर उस बूढी औरत को तुरंत पहचान गया और कहा की मेरे दिए हुए पहले चादर की कीमत तो मुझे तुम्हारे होनहार बेटे के रूप में मिल गया है जो की शायद चादर की कीमत से कही ज्यादा है यह बाते सुनकर उस बूढी माँ की आखे भर आई थी और शायद आज पहली बार उसे अपने चादर की कीमत का पता चल गया था जो की कही न कही उसके जिन्दगी में ख़ुशी लेकर आई थी
अल्लाह  ज़रूर सुनेगा


एक बादशाह था, वह जब नमाज़ के लिए मस्जिद जाता, तो 2 फ़क़ीर उसके दाएं और बाएं बैठा करते! दाईं तरफ़ वाला कहता: “या अल्लाह! तूने बादशाह को बहुत कुछ दिया है, मुझे भी दे दे!” बाईं तरफ़ वाला कहता: “ऐ बादशाह! अल्लाह ने तुझे बहुत कुछ दिया है, मुझे भी कुछ दे दे!” दाईं तरफ़ वाला फ़क़ीर बाईं तरफ़ वाले से कहता: “अल्लाह से माँग! बेशक वह सबसे बैहतर सुनने वाला है!” बाईं तरफ़ वाला जवाब देता: “चुप कर बेवक़ूफ़”
एक बार बादशाह ने अपने वज़ीर को बुलाया और कहा कि मस्जिद में दाईं तरफ जो फ़क़ीर बैठता है वह हमेशा अल्लाह से मांगता है तो बेशक अल्लाह उसकी ज़रूर सुनेगा, लेकिन जो बाईं तरफ बैठता है वह हमेशा मुझसे फ़रियाद करता रहता है, तो तुम ऐसा करो कि एक बड़े से बर्तन में खीर भर के उसमें अशर्फियाँ डाल दो और वह उसको दे आओ!

वज़ीर ने ऐसा ही किया… अब वह फ़क़ीर मज़े से खीर खाते-खाते दूसरे फ़क़ीर को चिड़ाता हुआ बोला: “हुह… बड़ा आया ‘अल्लाह देगा…’ वाला, यह देख बादशाह से माँगा, मिल गया ना?” खाने के बाद जब इसका पेट भर गया तो इसने खीर से भरा बर्तन उस दूसरे फ़क़ीर को दे दिया और कहा: “ले पकड़… तू भी खाले, बेवक़ूफ़ अगले दिन जब बादशाह नमाज़ के लिए मस्जिद आया तो देखा कि बाईं तरफ वाला फ़क़ीर तो आज भी वैसे ही बैठा है लेकिन दाईं तरफ वाला ग़ायब है!
बादशाह नें चौंक कर उससे पूछा: “क्या तुझे खीर से भरा बर्तन नहीं मिला?”
फ़क़ीर: “जी मिला ना बादशाह सलामत, क्या लज़ीज़ खीर थी, मैंने ख़ूब पेट भर कर खायी!”
बादशाह: “फिर?”
फ़क़ीर: “फ़िर वह जो दूसरा फ़क़ीर यहाँ बैठता है मैंने उसको देदी, बेवक़ूफ़ हमेशा कहता रहता है: ‘अल्लाह देगा, अल्लाह देगा!’
बादशाह मुस्कुरा कर बोला: “बेशक, अल्लाह ने उसे दे दिया!”
दुनियादारी की सीख 

एक संत ने अपने दो शिष्यों को दो डिब्बों में मूँग के दाने दिये और कहाः "ये मूँग हमारी अमानत हैं। ये सड़े गले नहीं बल्कि बढ़े-चढ़े यह ध्यान रखना। दो वर्ष बाद जब हम वापस आयेंगे तो इन्हें ले लेंगे।"
संत तो तीर्थयात्रा के लिए चले गये। इधर एक शिष्य ने मूँग के डिब्बे को पूजा के स्थान पर रखा और रोज उसकी पूजा करने लगा। दूसरे शिष्य ने मूँग के दानों को खेत में बो दिया। इस तरह दो साल में उसके पास बहुत मूँग जमा हो गये।
दो साल बाद संत वापस आये और पहले शिष्य से अमानत वापस माँगी तो वह अपने घर से डिब्बा उठा लाया और संत को थमाते हुए बोलाः "गुरूजी ! आपकी अमानत को मैंने अपने प्राणों की तरह सँभाला है। इसे पालने में झुलाया, आरती उतारी, पूजा-अर्चना की..."
संत बोलेः "अच्छा ! जरा देखूँ तो सही कि अन्दर के माल का क्या हाल है ?"
संत ने ढक्कन खोलकर देखा तो मूँग में घुन लगे पड़े थे। आधे मूँग की तो वे चटनी बना गये, बाकी बचे-खुचे भी बेकार हो गये।
संत ने शिष्य को मूँग दिखाते हुए कहाः "क्यों बेटा ! इन्ही घुनों की पूजा अर्चना करते रहे इतने समय तक !"
शिष्य बेचारा शर्म से सिर झुकाये चुपचाप खड़ा रहा। इतने में संत ने दूसरे शिष्य को बुलवाकर उससे कहाः "अब तुम भी हमारी अमानत लाओ।"
थोड़ी देर में दूसरा शिष्य मूँग लादकर आया और संत के सामने रखकर हाथ जोड़कर बोलाः "गुरूजी ! यह रही आपकी अमानत।"
संत बहुत प्रसन्न हुए और उसे आशीर्वाद देते हुए बोलेः "बेटा ! तुम्हारी परीक्षा के लिए मैंने यह सब किया था। मैं तुम्हें वर्षों से जो दुनियादारी की सीख दे रहा हूँ ,  उसको यदि तुम आचरण में नहीं लाओगे, अनुभव में नहीं उतारोगे तो उसका भी हाल इस डिब्बे में पड़े मूँग जैसा हो जायेगा।
चित्त और ध्यान

एक *साधू* किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया....!!!
पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं!!!
तो आईं तो एक ने कहा- *"आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया*...
*पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।"*
पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली...
*उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया*...
दूसरी बोली--
*"साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई..*
*अभी रोष नहीं गया,तकिया फेंक दिया।"*
तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें ?
तब तीसरी बोली--
*"बाबा! यह तो पनघट है,यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?"*
लेकिन चौथी ने कहा--
बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी-
*"क्षमा करना,लेकिन हमको लगता है,तूमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है,अभी तक वहीं का वहीं बने हुए है।*
*दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तुम जैसे भी हो,हरिनाम लेते रहो।"*
*सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना...*
आप ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे...
*"अभिमानी हो गए।"*
नीचे देखोगे तो कहेंगे...
*"बस किसी के सामने देखते ही नहीं।"*
आंखे बंद करोगे तो कहेंगे कि...
*"ध्यान का नाटक कर रहा है।"*
चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि...
*"निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।"*
और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि...
*"किया हुआ भोगना ही पड़ता है।"*
*ईश्वर* को राजी करना आसान है,
लेकिन *संसार* को राजी करना असंभव है....
*दुनिया* क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो....????
*आप अपना ध्यान नहीं लगा पाओगे...*

शरीर का छिलका



एक व्यक्ति ने महात्मा से प्रश्र किया। महात्मा जी आत्मा और शरीर के बारे में बताइए महात्मा जी ने उस आदमी को बहुत देर तक समझाया लेकिन उनकी समझ में कुछ नही आया। तो उन्होने एक प्रयोग किया। अपनी झोली में हाथ डाला और उसमे से आम निकालकर उन्होने उस आदमी को दिया। उसे कहा कि इस आम को संभाल कर रखे। व्यक्ति ने उसे संभालकर एक डिब्बे में रख दिया। महात्मा जी ने दस दिन बाद लौटकर उस आदमी से कहा जाओ फल मेरे सामने ले आओ। व्यक्ति ने डिब्बा लाकर महात्मा जी को डिब्बा लाकर दे दिया। महात्मा जी ने जैसे ही डिब्बा खोला और आम को हाथ में लेकर बोले जैसा सुन्दर आम मैंने तुम्हे दिया वैसा ही तुमने मुझे क्यों नही लौटाया। वह आदमी बोला मैंने तो आम को हाथ तक नही लगाया।डिब्बा बंद कर रखा था। किसी का हाथ इस तक नही पहुंचने दिया। लेकिन जहां इंसान का हाथ नही पहुंचता वहा भगवान का हाथ पंहुचता है, ताले इंसान के लिए हैं, भगवान के लिए नही उसका हाथ अंदर गया और उसे बिगाड़ गया। महात्मा जी ने कहा इसका रंग रुप कहां गया?वह बोला महाराज हर एक चीज समय के साथ बिगडऩे लगती है। महात्मा ने कहा क्या गुठली भी खराब हो गई। वह बोला नहीं। अब हम तुम्हें यही तो समझाना चाहते हैं कि आम का छिलका बाहर से गल गया, सड़ गया लेकिन गुठली खराब नहीं हुई। ऐसा ही तुने छिलका धारण किया हुआ है। जिसे शरीर कहते हैं। यह एक दिन सड़ जाएगा, गल जाएगा लेकिन जैसे गुठली का कुछ नहीं बिगड़ता, वैसे ही हमारी आत्मा सदा के लिए होती है। एक आम की गुठली तरह आत्मा फिर से शरीर धारण करेगी।
ज़रा सोचियेगा!!

एक परिवार मे 4 सदस्य थे ।पति-पत्नी दो बच्चे थे। सभी एक साथ बाजार गए। बाजार खत्म करने के बाद वापसी के समय जिस रास्ते से आ रहे उसी रास्ते से कुछ लोग मृत शरीर (लाश) ले के जा रहे थे ।
बच्चे थोड़े चंचल थे । रास्ते मे आने जाने वाले साधनो मे हाथ लगा देते । इसी बीच अचानक उनका हाथ मृत शरीर ले जाते लोगों मे लग गया ।
माँ ने देख लिया और तुरंत थप्पड़ लगाते हुए बोली वो लोग अशुध्द है मृत शरीर लेके श्मशान जा रहे अब तुम्हें नहाना पड़ेगा। थोड़ा ठंडी ही थी उसे नहलाया गया ।
कुछ दिनों बाद , पिता के साथ वो लड़का बाजार गया । पिता जी उस बच्चे के सामने मांस खरीदे । लड़का सब देख रहा था। मांस लेकर घर पहुंचे। घर मे सब बन के तैयार हुआ और डाईनिंग टेबल पर खाने के लिए बैठे।
माँ मीठी आवाज मे बोली बेटा खाओ। हम नहीं खाएगे बेटे ने जवाब दिया ।
माँ ने पूछा क्यों ?
लड़के का जवाब सुनते ही माता पिता अपना सर झुका लिए।
लड़के का जवाब :- माँ मै उस दिन केवल अन्जाने मे मृत शरीर से मेरा हाथ लग गया तो आपने मुझे मारा और अशुध्द बोलकर नहलाया, और आज पैसे देकर किसी मजबूर बकरे को कटवा कर लाए । और आपने उसे घर मे बनाया । और फिर आप खुद खा भी रही हो और हमें भी खिला रही हो। दोनो तो मृत शरीर ही हैं फिर ऐसा क्यूँ? क्या हमारा पेट श्मशान है? 
मृत व्यक्ति को अग्नि से जलाया जाता है... और मॉस को पेट की अग्नि मे....फिर अंतर कहाँ रहता है?? ज़रा सोचियेगा!!

मन की आवाज़ !!!
एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई थी। तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देख बुढ़िया ने आवाज दी, ‘अरे बेटा, एक बात तो सुन।’ घुड़सवार रुक गया। उसने पूछा, ‘क्या बात है माई?’ बुढ़िया ने कहा, ‘बेटा, मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है। बहुत थक गई हूं। यह गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है। यह गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘माई तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी बहुत दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। वहां पहुंचकर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा?’ यह कहकर वह चल पड़ा।
कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा, ‘तू भी कितना मूर्ख है। वह वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती। क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। तुझे गठरी दे रही थी। संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता। चल वापस, गठरी ले ले। ‘
वह घूमकर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला, ‘माई, ला अपनी गठरी। मैं ले
चलता हूं। गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा।’ बुढ़िया ने कहा, ‘न बेटा, अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी।’ घुड़सवार ने कहा, ‘अभी तो तू कह रही थी कि ले चल। अब ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही। ऐसा क्यों? यह उलटी बात तुझे किसने समझाई है?’
बुढ़िया मुस्कराकर बोली, ‘उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है वही मेरे भीतर भी बैठा है। तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा। मुझे उसने समझाया कि गठरी न दे, नहीं तो वह भाग जाएगा। तूने भी अपने मन की आवाज सुनी और मैंने भी सुनी।’
मन कभी झूट नहीं बोलता.....मन हमेशा आगाह करता है....जिससे इंट्यूशन कहते है....हम ज़बरदस्ती कुछ करने के लिए मन की बात तो नज़रअंदाज़ केर देते है. आगे से जब मन आगाह करे थो उस की ज़रूर सुनना.