Sunday, July 31, 2016

बिटिया

बिटिया

अशोक भाई ने घर मेँ पैर रखा….‘अरी सुनती हो !’आवाज सुनते ही अशोक भाई की पत्नी हाथ मेँ पानी का गिलास लेकर बाहर आयी और बोली “अपनी बिटिया का रिश्ता आया है, अच्छा भला इज्जतदार सुखी परिवार है, लडके का नाम युवराज है । बैँक मे काम करता है। बस बिटिया हाँ कह दे तो सगाई कर देते है.”

बिटिया उनकी एकमात्र लडकी थी..घर मेँ हमेशा आनंद का वातावरण रहता था । कभी कभार अशोक भाई सिगरेट व पान मसाले के कारण उनकी पत्नी और बिटिया के साथ कहा सुनी हो जाती लेकिन अशोक भाई मजाक मेँ निकाल देते ।बिटिया खूब समझदार और संस्कारी थी । टयुशन, सिलाई काम करके पिता की मदद करने की कोशिश करती । अब तो बिटिया ग्रज्येएट हो गई थी और नोकरी भी करती थी , लेकिन अशोक भाई उसकी पगार मेँ से एक रुपया भी नही लेते थे… और रोज कहते ‘बेटी यह पगार तेरे पास रख तेरे भविष्य मेँ तेरे काम आयेगी ।’

दोनो घरो की सहमति से बिटिया और युवराज की सगाई कर दी गई और शादी का मुहूर्त भी निकलवा दिया. अब शादी के 15 दिन और बाकी थे.

अशोक भाई ने बिटिया को पास मेँ बिठाया और कहा- ” बेटा तेरे ससुर से मेरी बात हुई…उन्होने कहा दहेज मेँ कुछ नही लेँगे, ना रुपये, ना गहने और ना ही कोई चीज । तो बेटा तेरे शादी के लिए मेँने कुछ रुपये जमा किए है। यह दो लाख रुपये मैँ तुझे देता हूँ।.. तेरे भविष्य मेँ काम आयेगे, तू तेरे खाते मे जमा करवा देना.’“जी पापा” –बिटिया ने छोटा सा जवाब देकर अपने रुम मेँ चली गई.

समय को जाते कहाँ देर लगती है ?शुभ दिन बारात आंगन में आयी, पंडितजी ने चंवरी मेँ विवाह विधि शुरु की। फेरे फिरने का समय आया…. कोयल जैसे कुहुकी हो ऐसे बिटिया दो शब्दो मेँ बोली “रुको पडिण्त जी ।

मुझे आप सब की उपस्तिथि मेँ मेरे पापा के साथ बात करनी है,” “पापा आप ने मुझे लाड प्यार से बडा किया, पढाया, लिखाया खूब प्रेम दिया इसका कर्ज तो चुका सकती नही… लेकिन युवराज और मेरे ससुर जी की सहमति से आपने दिया दो लाख रुपये का चेक मैँ वापस देती हूँ। इन रुपयों से मेरी शादी के लिए लिये हुए उधार वापस दे देना और दूसरा चेक तीन लाख जो मेने अपनी पगार मेँ से बचत की है… जब आप रिटायर होगेँ तब आपके काम आयेगेँ, मैँ नही चाहती कि आप को बुढापे मेँ आपको किसी के आगे हाथ फैलाना पडे ! अगर मैँ आपका लडका होता तब भी इतना तो करता ना ? !!! ”

वहाँ पर सभी की नजर बिटिया पर थी… “पापा अब मैं आपसे जो दहेज मेँ मांगू वो दोगे ?” अशोक भाई भारी आवाज मेँ -“हां बेटा”, इतना ही बोल सके । “तो पापा मुझे वचन दो” आज के बाद सिगरेट के हाथ नही लगाओगे…. तबांकु, पान-मसाले का व्यसन आज से छोड दोगे। सब की मोजुदगी मेँ दहेज मेँ बस इतना ही मांगती हूँ ।.”
लडकी का बाप मना कैसे करता ?

शादी मे लडकी की विदाई समय कन्या पक्ष को रोते देखा होगा लेकिन आज तो बारातियो कि आँखो मेँ आँसुओ कि धारा निकल चुकी थी। मैँ दूर बिटिया को लक्ष्मी रुप मे देख रही थी…. शगन का लिफाफा मैं अपनी पर्स से नही निकाल पा रही था….साक्षात लक्ष्मी को मैं कैसे लक्ष्मी दूं ??

लेकिन एक सवाल मेरे मन मेँ जरुर उठा, “भ्रूण हत्या करने वाले लोगो को इस जैसी लक्ष्मी मिलेगी क्या” ???

कृपया आंसू पोछिए और प्रेरणा लीजिये। बेटी होना सौभाग्य की बात है....:बेटियां हर घर मै कहाँ होती हैं, ईश्वर का जिस घर पे हाथ हो, बस वहां होती हैं "..


Friday, July 29, 2016

कमाई का हक

कमाई का हक
एक बहुत अमीर आदमी ने रोड के किनारे एक भिखारी से पूछा.. "तुम भीख क्यूँ मांग रहे हो जबकि तुम तन्दुरुस्त हो..."
भिखारी ने जवाब दिया... "मेरे पास महीनों से कोई काम नहीं है... अगर आप मुझे कोई नौकरी दें तो मैं अभी से भीख मांगना छोड़ दूँ"
अमीर मुस्कुराया और कहा.. "मैं तुम्हें कोई नौकरी तो नहीं दे सकता .. लेकिन मेरे पास इससे भी अच्छा कुछ है... क्यूँ नहीं तुम मेरे बिज़नस पार्टनर बन जाओ..."
भिखारी को यकीन नहीं हुआ जो उसने सूना था... ये आप क्या कह रहे हैं क्या ऐसा मुमकीन है...?"
"हाँ मेरे पास एक चावल का प्लांट है.. तुम चावल बाज़ार में सप्लाई करो और जो भी मुनाफ़ा होगा उसे हम महीने के अंत में आपस में बाँट लेंगे.."
भिखारी के आँख से ख़ुशी के आंसू निकल पड़ें... " आप मेरे लिए जन्नत के फ़रिश्ते बन कर आये हैं मैं किस कदर आपका शुक्रिया अदा करूँ.."
फिर अचानक वो चुप हुआ और कहा.. "हम मुनाफे को कैसे बांटेंगे..?क्या मैं 20% और आप 80% लेंगे ..या मैं 10% और आप 90% लेंगे.. जो भी हो ...मैं तैयार हूँ और बहुत खुश हूँ..."
अमीर आदमी ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखा ."मुझे पैसे की कोई जरूरत नहीं मेरे दोस्त ..मैं पहले से ही काफी अमीर हूँ ..मुझे मुनाफे का केवल 2.5% चाहिए ..ताकि तुम तरक्की कर सको.."
भिखारी अपने घुटने के बल गिर पड़ा.. और रोते हुए बोला... "आप जैसा कहेंगे मैं वैसा करूंगा... मैं बहुत शुक्रगुजार हूँ ...।
और अगले दिन से भिखारी ने काम शुरू कर दिया ..उम्दा चावल और बाज़ार से सस्ते... और दिन रात की मेहनत..बहुत जल्द ही उसकी बिक्री काफी बढ़ गई... रोज ब रोज तरक्की होने लगी....
और फिर वो दिन भी आया जब मुनाफा बांटना था.और वो 2.5% भी बहुत ज्यादा था... जितना उस भिखारी ने कभी सोचा भी नहीं था... अचानक एक शैतानी ख्याल उसके दिमाग में आया...
"दिन रात मेहनत मैंने की है...उस अमीर आदमी ने कोई भी काम नहीं किया.. सिवाय मुझे अवसर देने की..मैं उसे ये 2.5% क्यूँ दूँ ...वो इसका
हकदार बिलकुल भी नहीं है..।
और फिर वो अमीर आदमी अपने नियत समय पर मुनाफे में अपना हिस्सा 2.5% वसूलने आया और भिखारी ने जवाब दिया " अभी कुछ हिसाब बाकि है, मुझे यहाँ नुक्सान हुवा है, लोगोसे कर्ज की अदायगी बाक़ी है, ऐसे शकले बनाकर उस आमिर आदमी का हिस्सा देने को टालने लगा."
आमिर आदमी ने कहा के "मुझे पता है तुम्हे कितना मुनाफा हुवा है फिर कयु तुम मेरा हिस्सा देनेसे टाल रहे हो ?"
उस भिखारी ने तुरंत जवाब दिया "तुम इस मुनाफे के हकदार नहीं हो ..क्योंकि सारी मेहनत मैंने की है..."
अब सोचिये...
अगर आप वो अमीर होते और भिखारी से ऐसी जवाब सुनते .. तो ...आप पर क्या करते ?
ठीक इसी तरह.........
रब ने हमें जिंदगी दिया..हाथ- पैर..आँख-कान.. दिमाग दिया.. सोचने समझने की कुवत दी...बोलने को जुबान दिए...जज्बात दिए..."अगर यह सब वह न देता तो हम ज़िन्दगी कैसे गुज़रते
याद रखिये ....आपकी कमाई का कुछ % रब का हक है....इसे राज़ी ख़ुशी अदा कीजिये.तांकि वह उससे किसी और को दे केर उसकी ज़िन्दगी सवार सके...और अगर उससे न दे केर किसी ऐसे इंसान को दो जो वाकई ज़रुरत मंद है तो फिर क्या बात है.
दोस्तों, अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अच्छे काम मे ज़रूर लगाओ और शुक्रिया अदा कीजिये उस को..जिसने आपको जिंदगी दी।।।।

Thursday, July 28, 2016

क्रूर राजा

पुराने समय की बात है, एक राज्य का राजा बहुत अमीर था। उसके राज्य में बहुत से नौकर काम करते थे। स्वभाव से वह राजा बहुत ही क्रूर इंसान था। जिस किसी से भी गलती हो जाती थी, वह उसके प्राण लेने में देर नहीं लगता था। राजा ने अपने राज्य में अपने लिए 10 जंगली खूंखार कुत्ते पाल रखे थे। वह उन कुत्तो का प्रयोग तब करता जब राज्य में किसी से कोई गलती हो जाती थी। जिससे गलती होती थी, उसे उन खूंखार कुत्तो के सामने फेक दिया जाता था।
एक समय की बात हैं, राजा के एक अनुभवी और विश्वासपात्र मंत्री से एक छोटी सी गलती हो गयी। उसकी गलती बहुत छोटी सी थी, परन्तु राजा का स्वभाव बहुत ही क्रूर था, वह छोटी से छोटी गलती में सजा देता ही था। यही कारण था, कि वह अपने अनुभवी और विश्वासपात्र मंत्री की भी छोटी सी गलती को बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसने अपने उस मंत्री को भी खूंखार कुत्तो के सामने फिंकवाने का हुक्म सुना दिया।
राज्य के नियमो के अनुसार मंत्री को कुत्तो के आगे फेकने से पहले उसकी अन्तिम इच्छा पूछी गयी। मंत्री राजा के समीप गया, और राजा के सामने हाथ जोड़ते हुए बोलामहाराज! मैं आपके राज्य में दस सालो से आपकी सेवा कर रहा हूँ, मैने आपका नमक खाया हैं, अगर आप,,,,,,,,
राजा ने उसकी बात बीच में रोकते हुए कहां- ,तुम सही कह रहे हो, परन्तु मुझे यह बात याद दिलाकर तुम अपने द्वारा की गई गलती की सजा से बच नहीं सकते।
राजा की बात सुनकर मंत्री ने पुनः अपने हाथ जोड़ते हुए कहा, नहीं महाराज! मैं अपनी सजा से बचना नहीं चाहता। मैं तो केवल यह चाहता हूँ कि आप मुझे केवल दस दिनों की मोहलत दे दीजिये, जिससे मैं अपने परिवार के लिए अपने बचे हुए अधूरे कार्यो को पूरा कर…..
यह कहते कहते वह रुक गया, और उसने अपना सर झुका लिया। राजा ने उसकी ओर देखा और दयालुता दिखाते हुए उससे कहा,  ठीक है हम तुम्हे दस दिनों की मोहलत देते हैं। यह कहते हुए राजा अपनी गद्दी छोड़कर चले गए। दस दिनों के लिए दरबार भंग कर दिया गया।
दस दिन बीत गए। राजा का दरबार पुनः लगा। मंत्री को राजा के सामने लाया गया। राजा ने एक बार मंत्री की ओर देखा और फिर अपने सैनिको से मंत्री को खूंखार कुत्तो के सामने फेकने का इशारा किया।
सैनिको ने राजा का इशारा मिलते ही मंत्री को ले जाकर कुत्तो के बाड़े में फेंक दिया।
परंतु यह क्या हुआ ? सभी कुत्ते मंत्री पर टूट पड़ने की बजाए उसके आगे पीछे अपनी पूँछ हिला हिला कर घूम रहे थे। यह सब देखकर राजा की आँखे खुली की खुली रह गयी। राजा की समझ नहीं रहा था, कि यह क्या हो रहा है।
राजा अपनी गद्दी से उठा और दहाड़ते हुए बोलो, यह सब क्या हो रहा हैं। ये खूंखार कुत्ते मंत्री के साथ इस तरह का व्यवहार क्या कर रहे हैं?”
राजा की बात सुनकर मंत्री बोला, महाराज आपने जो मुझे दस दिनों की मोहलत दी थी। उन दस दिनों का एक एक क्षण मैने इन बेजुबानों जानवरो की सेवा लगाया हैं। मैं दस दिनों तक रोज इन्हे खिलाया पिलाया और इनकी सेवा की हैं। केवल यही कारण हैं, कि यह मुझपर टूट पड़ने की बजाए अपनी पूँछ हिला-हिला कर मेरे आगे-पीछे घूम रहे हैं। ये कुत्ते खूंख्वार और जंगली होकर भी मेरी दस दिनों की सेवा नहीं भुला पा रहे हैं। परन्तु मुझे खेद है, कि आप मेरी एक छोटी सी गलती पर मेरी 10 वर्षों की स्वामी भक्ति को भूल गए और मुझे मौत की सजा सुना दी।
मंत्री की बात सुनकर राजा को खुद पर शर्म महसूस हुयी, और अपनी गलती का अहसास हुआ। राजा ने मंत्री को तुरन्त आजाद करने का हुक्म दे दिया, और आगे से ऐसा करने की कसम ली।

वह राजा तो पश्चाताप करके और क्षमाशील बनके दुनिया में अपना यश पैदा करके चला गया, परन्तु वह आज भी हमारी ओर देख रहा है, और हमसे भी इसी प्रकार क्षमाशील होने की उम्मीद कर रहा है। आइए, आज हम भी खुद से प्रण करें कि हम भी किसी की हज़ार अच्छाइयों को उसकी एक बुराई के सामने छोटा नहीं होने देंगे और किसी की एक छोटी सी गलती के लिए उसे उस राजा की तरह इतनी बड़ी सजा नहीं देंगे।


परमात्मा इतने निकट है, हम आँख ही नहीं उठाते !!!


एक प्रेमी था, वह दूर देश चला गया था। उसकी प्रेयसी राह देखती रही। वर्ष आए, गए। पत्र आते थे उसके, अब आता हूं, अब आता हूं। लेकिन प्रतीक्षा लंबी होती चली गई और वह नहीं आया।
फिर वह प्रेयसी एक दिन खुद ही चल कर उस जगह पहूंच गई जहां उसका प्रेमी था। वह उसके द्वार पर पहूंच गई, द्वार खुला था। वह भीतर पहूंच गई।
प्रेमी कुछ लिख रहा था, वह सामने ही बैठ कर देखने लगी, की कब वह लिखना बंद करे और उस की तरफ देखे. प्रेमी उसी प्रेयसी को पत्र लिख रहा था। और इतने दिन से उसने बार - बार वादा किया और टूट गया तो बहुत – बहुत क्षमाएं मांग रहा था। बहुत - बहुत प्रेम की बातें लिख रहा था, बड़े गीत और कविताएं लिख रहा था। वह लिखते ही चला जा रहा है। उसे पता भी नहीं है कि सामने कौन बैठा है।
आधी रात हो गई तब वह पत्र कहीं पूरा हुआ। उसने आँख ऊपर उठाई तो वह घबड़ा गया। समझा कि क्या कोई भूत- प्रेत है। वह सामने कौन बैठा हुआ है? वह तो उसकी प्रेयसी है। नहीं लेकिन यह कैसे हो सकता है। वह चिल्लाने लगा कि नहीं - नहीं, यह कैसे हो सकता है? तू यहां है, तू कैसे, कहां से आई?
उसकी प्रेयसी ने कहा: मैं घंटों से बैठी हूं और प्रतीक्षा कर रही हूं और सोच रही हु की कब तुम्हारा लिखना बंद हो तो शायद तुम्हारी आंख मेरे पास पहुंचे। वह प्रेमी बहुत पछताया...उससे बहुत बुरा लगा कि पागल हूं मैं। मैं तुझी को पत्र लिख रहा हूं और इस पत्र के लिखने के कारण तुझे नहीं देख पा रहा हूं और तू सामने मौजूद है। आधी रात बीत गई, तू यहां थी ! मुझे माफ़ केर दे मैंने तेरी तरफ ध्यान ही नहीं दिया.
परमात्मा उससे भी ज्यादा निकट मौजूद है। हम न मालूम क्या - क्या बातें किए चले जा रहे हैं। न मालूम क्या - क्या पत्र शास्त्र पढ़ रहे हैं। कोई गीता खोल कर बैठा हुआ है, कोई कुरानखोल कर बैठा हुआ है, कोई बाइबिल पढ़ रहा है। पढ़ने से मना नहीं, पर जो लिखा है उस पर चलना भी सीखो . बस पढ़ लेने से कोई ईश्वर तक नहीं पहुँचता . उस मे समाने के लिए उस के जैसा बनना पढता है. जल ही जल मे समां सकता है Iधर्म के नाम पर न मालूम क्या... क्या लोग कर रहे हैं; और जिसके लिए कर रहे हैं वह चारों तरफ हमेशा मौजूद है। लेकिन फुर्सत हो तब तो आंख उठे। काम बंद हो तो वह दिखाई पड़े.
हमेशा सुनते आये हैं की कि ईश्वर बाहर नहीं है। अंदर है। जरुरत है सिर्फ सिमरन की। शांत मन से ध्यान म बैठो ....मन की ऑंखें खोलो और देखो , तुम खुद ही ईश्वर का अंश हो... बस जरुरत है स्थिरता कि।


Wednesday, July 27, 2016

पिंजरे का तोता


अक्सर सत्संग का लाभ वो उठा लेते हैं जो कभी भी सत्संग में नही जाते।
एक समय की बात हैं, एक सेठ और सेठानी रोज सत्संग में जाते थे। सेठजी के एक घर एकपिंजरे में तोता पाला हुआ था। तोता रोज सेठ-सेठानी को बाहर जाते देख एक दिन पूछता हैं कि सेठजी आप रोज कहाँ जाते है। सेठजी बोले कि भाई सत्संग में ज्ञान सुनने जाते है। तोता कहता है सेठजी फिर तो कोई ज्ञान की बात मुझे भी बताओ। तब सेठजी कहते हैं की ज्ञान भी कोई घर बैठे मिलता हैं। इसके लिए तो सत्संग में जाना पड़ता हैं। तोता कहता है कोई बात नही सेठजी आप मेरा एक काम करना। सत्संग जाओ तब संत महात्मा से एक बात पूछना कि में आजाद कब होऊंगा।
सेठजी सत्संग ख़त्म होने के बाद संत से पूछते है की महाराज हमारे घर जो तोता है उसने पूछा हैं की वो आजाद कब होगा? संत को ऐसा सुनते हीं पता नही क्या होता है जो वो बेहोश होकर गिर जाते है। सेठजी संत की हालत देख कर चुप-चाप वहाँ से निकल जाते है।
घर आते ही तोता सेठजी से पूछता है कि सेठजी संत ने क्या कहा। सेठजी कहते है की तेरे किस्मत ही खराब है जो तेरी आजादी का पूछते ही वो बेहोश हो गए। तोता कहता है कोई बात नही सेठजी में सब समझ गया।
दूसरे दिन सेठजी सत्संग में जाने लगते है तब तोता पिंजरे में जानबूझ कर बेहोश होकर गिर जाता हैं। सेठजी उसे मरा हुआ मानकर जैसे हीं उसे पिंजरे से बाहर निकालते है तो वो उड़ जाता है। सत्संग जाते ही संत सेठजी को पूछते है की कल आप उस तोते के बारे में पूछ रहे थे ना अब वो कहाँ हैं। सेठजी कहते हैं, हाँ महाराज आज सुबह-सुबह वो जानबुझ कर बेहोश हो गया मैंने देखा की वो मर गया है इसलिये मैंने उसे जैसे ही बाहर निकाला तो वो उड़ गया।
तब संत ने सेठजी से कहा की देखो तुम इतने समय से सत्संग सुनकर भी आज तक सांसारिक मोह-माया के पिंजरे में फंसे हुए हो और उस तोते को देखो बिना सत्संग में आये मेरा एक इशारा समझ कर आजाद हो गया।
दोस्तों इस कहानी से तात्पर्य ये है कि हम सत्संग में तो जाते हैं ज्ञान की बाते करते हैं या सुनते भी हैं, पर हमारा मन हमेशा सांसारिक बातों में हीं उलझा रहता हैं। सत्संग में भी हम सिर्फ उन बातों को पसंद करते है जिसमे हमारा स्वार्थ सिद्ध होता हैं। जबकि सत्संग जाकर हमें सत्य को स्वीकार कर सभी बातों को महत्व देना चाहिये और जिस असत्य, झूठ और अहंकार को हम धारण किये हुए हैं उसे साहस के साथ मन से उतार कर सत्य को स्वीकार करना


Tuesday, July 26, 2016

मृत्यु _से_मित्रता
एक चतुर व्यक्ति को काल से बहुत डर लगता था। एक दिन उसे चतुराई सूझी और काल को अपना मित्र बना लिया। उससे कहा - मित्र, तुम किसी को भी नहीं छोड़ते हो, किसी दिन मुझे भी गाल में धर लोगो।
काल ने कहा-सृष्टि नाटक का यह शाश्वत नियम है इस लिए मैं मजबूर हूँ। आप मेरे मित्र है मैं आपकी जितनी सेवा कर सकता हूँ करूँगा ही, आप मुझ से क्या आशा रखते है.बताइये।
चतुर व्यक्ति ने कहा-मैं इतना ही चाहता हूँ कि आप मुझे लेने पधारने के कुछ दिन पहले एक पत्र अवश्य लिख देना ताकि मैं अपने बाल-बच्चो को कारोबार की सभी बाते अच्छी तरह से समझा दूँ और स्वयं भी भगवान के भजन में लग जाऊँ।
काल ने प्रेम से कहा-यह कौन सी बड़ी बात है मैं एक नहीं आपको चार पत्र भेज दूँगा। मनुष्य बड़ा प्रसन्न हुआ सोचने लगा कि आज से मेरे मन से काल का भय भी निकल गया, मैं जाने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण करके जाऊँगा तो देवता भी मेरा स्वागत करेंगे।
दिन बीतते गये आखिर मृत्यु की घड़ी आ पहुँची। काल अपने दूतों सहित उस चतुर व्यक्ति के समीप आकर कहने लगा-आपके नाम का वारंट मेरे पास है मित्र चलिए, मैं सत्यता और दृढ़तापूर्वक अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए एक क्षण भी तुम्हें और यहाँ नहीं छोड़ूँगा।
मनुष्य के माथे पर बल पड़ गये, भृकुटी तन गयी और कहने लगा धिक्कार है तुम्हारे जैसे मित्रों का, मेरे साथ विश्वासघात करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती ? तुमने मुझे वचन दिया था कि लेने आने से पहले पत्र लिखूँगा। मुझे बड़ा दुःख है कि तुम बिना किसी सूचना के अचानक दूतों सहित मेरे ऊपर चढ़ आए। मित्रता तो दूर रही तुमने अपने वचनों को भी नहीं निभाया।
काल हँसा और बोला-मित्र इतना झूठ तो न बोलो। मेरे सामने ही मुझे झूठा सिद्ध कर रहे हो। मैंने आपको एक नहीं चार पत्र भेजें। आपने एक भी उत्तर नहीं दिया। मनुष्य ने चौक कर पूछा-कौन से पत्र ? कोई प्रमाण है ? मुझे पत्र प्राप्त होने की कोई डाक रसीद आपके पास है तो दिखाओ।
काल ने कहा - मित्र, घबराओ नहीं। मेरे चारों पत्र इस समय आपके पास मौजूद है। मेरा पहला पत्र आपके सिर पर चढ़कर बोला, आपके काले सुन्दर बालों को पकड़ कर उन्हें सफ़ेद कर दिया और यह भी कि सावधान हो जाओ, जो करना है कर डालो।

नाम, बड़ाई और धन-संग्रह के झंझटो को छोड़कर भजन में लग जाओ पर मेरे पत्र का आपके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ। बनावटी रंग लगा कर आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया और पुनः जवान बनने के सपनों में खो गए। आज तक मेरे श्वेत अक्षर आपके सिर पर लिखे हुए है।
कुछ दिन बाद मैंने दूसरा पत्र आपके नेत्रों के प्रति भेजा। नेत्रों की ज्योति मंद होने लगी। फिर भी आँखों पर मोटे शीशे चढ़ा कर आप जगत को देखने का प्रयत्न करने लगे। दो मिनिट भी संसार की ओर से आँखे बंद करके, ज्योतिस्वरूप प्रभु का ध्यान, मन में नहीं किया।
इतने पर भी सावधान नहीं हुए तो मुझे आपकी दीनदशा पर बहुत तरस आया और मित्रता के नाते मैंने तीसरा पत्र भी भेजा। इस पत्र ने आपके दाँतो को छुआ, हिलाया और तोड़ दिया। और अपने इस पत्र का भी जवाब न देखकर और ही नकली दाँत लगवाये और जबरदस्ती संसार के भौतिक पदार्थों का स्वाद लेने लगे।
मुझे बहुत दुःख हुआ कि मैं सदा इसके भले की सोचता हूँ और यह हर बात एक नया, बनावटी रास्ता अपना ने को तैयार रहता है। अपने अन्तिम पत्र के रूप में मैंने रोग-क्लेश तथा पीड़ाओ को भेजा परन्तु आपने अहंकार वश सब अनसुना कर दिया।
जब मनुष्य ने काल के भेजे हुए पत्रों को समझा तो फुट-फुट कर रोने लगा और अपने विपरीत कर्मो पर पश्चाताप करने लगा। उसने स्वीकार किया कि मैंने गफलत में शुभ चेतावनी भरे इन पत्रों को नहीं पढ़ा, मैं सदा यही सोचता रहा कि कल से भगवान का भजन करूँगा। अपनी कमाई अच्छे शुभ कार्यो में लगाऊँगा, पर वह कल नहीं आया।
काल ने कहा-आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग-द्वेष, स्वार्थ और भोगों के लिए किया। जान-बूझकर ईश्वरीय नियमों को जो तोड़ता है, वह अक्षम्य है। मनुष्य को जब बातों से काम बनते हुए नज़र नहीं आया तो उसने काल को करोड़ों की सम्पत्ति का लोभ दिखाया।
काल ने हँसकर कहा-यह मेरे लिए धूल है। लोभ संसारी लोगो को वश में कर सकता है, मुझे नहीं। यदि तुम मुझे लुभाना ही चाहते थे तो सच्चाई और शुभ कर्मो का धन संग्रह करते।
काल ने जब मनुष्य की एक भी बात नहीं सुनी तो वह हाय-हाय करके रोने लगा और सभी सम्बन्धियों को पुकारा परन्तु काल ने उसके प्राण पकड़ लिए और चल पड़ा अपने गन्तव्य की ओर।
भावार्थ-समय के साथ उम्र की निशानियों को देख कर तो कम से कम हमें प्रभु की याद में रहने का अभ्यास करना चाहिए और अभी तो कलयुग का समय है इस में तो हर एक को चाहे छोटा हो या बड़ा सब को प्रभु की याद में रहकर ही कर्म करना चाहिए

Sunday, July 24, 2016

संतोष और जीवन


           
            
           
            पुराने समय की बात है, एक गाँव में दो किसान रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोड़ी थोड़ी ज़मीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाते थे।

 अकस्मात कुछ समय पश्चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पे मृत्यु हो गयी। यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए। उन दोनों को भगवान के पास लाया गया। भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा, अब तुम्हे क्या चाहिये, तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी, अब तुम्हें क्या बना के मैं पुनः संसार में भेजूंI

 भगवान की बात सुनकर उनमे से एक किसान बड़े गुस्से से बोलाहे भगवान! आपने इस जन्म में मुझे बहुत घटिया ज़िन्दगी दी थी। आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे। पूरी ज़िन्दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया। देखो कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने।
           
 उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हे क्या बनाऊँ।

 भगवान का प्रश्न सुनकर वह किसान पुनः बोला, भगवन आप कुछ ऐसा कर दीजिये, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पड़े। मुझे तो केवल चारो तरफ से पैसा ही पैसा मिले।

 अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया। भगवान से उसकी बात सुनी और कहा, तथास्तु, तुम अब जा सकते हो मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है।

 उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछातुम बताओ तुम्हे क्या बनना है, तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, तुम क्या चाहते हो?

 उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, हे भगवन। आपने मुझे सबकुछ दिया, मैं आपसे क्या मांगू। आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपे मेहनत से काम करके मैंने अपना परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पे कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे। भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी कभी मैं भोजन होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था, और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे। ऐसा कहकर वह चुप हो गया।

 भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा, तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ ?किसान भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती की, हे प्रभु! आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये। भगवान ने कहा, तथास्तु, तुम जाओ तुम्हारे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा नहीं जायेगा।
            अब दोनों का पुनः उसी गाँव में एक साथ जन्म हुआ। दोनों बड़े हुए।
            पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारो तरफ से केवल धन मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े, वह व्यक्ति उस गाँव का सबसे बड़ा भिखारी बना। अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था, और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालके ही जाता था।

 और दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये, वह उस गाँव का सबसे अमीर आदमी बना।

दोस्तों ईश्वर ने जो दिया है उसी में संतुष्ट होना बहुत जरुरी है। अक्सर देखा जाता है कि सभी लोगों को हमेशा दूसरे की चीज़ें ज्यादा पसंद आती हैं और इसके चक्कर में वो अपना जीवन भी अच्छे से नहीं जी पाते। मित्रों हर बात के दो पहलू होते हैं  सकारात्मक और नकारात्मक, अब ये आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप चीज़ों को नकारत्मक रूप से देखते हैं या सकारात्मक रूप से। अच्छा जीवन जीना है तो अपनी सोच को अच्छा बनाइये, चीज़ों में कमियाँ मत निकालिये बल्कि जो भगवान ने दिया है उसका आनंद लीजिये और हमेशा दूसरों के प्रति सेवा भाव रखिये यही इस कहानी की शिक्षा है|